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पर्मालिंक

टिप्पणी

कल को आकार देने वाला कलाकार देश की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक धरोहर को अपनी हस्त कलां के माध्यम से संजोकर संरक्षित रखने में सहायक होता है, वही सरकार की उपयोगी जनकल्याणकारी योजनाओं को जनमानस तक पहुंचने हेतु अधक परिश्रम भी करता है। एक समय था जब पेंटर साहब हुआ करते थे फिर पेंटर बाबू.... अब तो ठीक से कोई पेंटर भी नही कहता। इस कलां को संरक्षित रखने के उद्देश्य को लेकर कई कलाकारों ने इसे अपना रोजगार के रूप में माना। डिजिटल (फ्लेक्स) जैसे आधुनिक उपकरणों के साथ ही तमाम आर्थिक विषमता के बीच भी वह डिगा नहीं। आज ऐसे हजारों लाखों कलाकार (पेंटर) जिनकी कई श्रेणियां हो सकती है जैसे आर्टिस्ट, चित्रकार, दीवाल लेखन वाले, एडवरटाइजर, बिल्डिंग को सुंदर बनाने वाले पुताई पेंटर आदि सभी आर्थिक बदहाली से गुजर रहे है।
  **अफसोस.... देश में लाखों पेंटर है (जैसे चित्रकार, रंगकार, बिल्डिंग पुताई पेंटर, दीवाल लेखन वाले एडवरटाईजर) मगर माननीय प्रधानमंत्री जी ने इन सबको ही **"विश्वकर्मा योजना"** से दूर रखा है, जबकि हस्त कलां को संरक्षित रखने वाले, समाज में आर्थिक रूप से कमजोर हो चुकी इस प्रकार के कार्यों में संलग्न सभी कलाकारों को इस योजना से लाभान्वित करने की अति आवश्यकता है जिसे अनदेखा किया जा रहा है। रजिस्टर्ड भारतीय कलाकार संघ माननीय प्रधानमंत्री जी से मांग करता है की इस प्रकार के कलाकारों को भी लाभार्थी श्रेणी में शामिल करने की कृपा करें ताकि लाखो कलाकार (पेंटर) इस योजना का लाभ उठा सकें।
  निवेदक... लखनलाल आजाद, राष्ट्रीय संगठनमंत्री, भारतीय कलाकार संघ भारत

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